Champa rautela

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तुम्हरी परछाईं

आज भी बातें होती है, 

कभी चाय का गिलास, 
तो कभी पुरानी तस्वीरे, 
कभी बेवजह मुस्कुराना, 
तो कभी ख़ुद को लेखक मानना, 

आज भी बातें होती हैं, 
तुम्हें देखना, 
खुद को आईना समझना, 
दर्द की दवा को कलम कहना, 
आज भी दीवाली, 
होली नहीं लगी, 
तुम बिन रंग तो थे, 
पर रंगोली गहरी ना थी, 

आज भी बातें होती हैं, 
कभी शब्दों की कहानी में, 
कभी किताबों की दुनिया में, 
तुम्हें ख़ुद सा मानकर, 
खुद को खुश कर लिया करती हूं, 
लेखकों की गिनती में मैं भी अंक 
ले लेती हूं, 

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8 Comments

Suryansh

07-Nov-2022 10:21 PM

बहुत ही सुंदर

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बहुत ही उम्दा सृजन

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Raziya bano

02-Nov-2022 06:51 PM

Shaandar

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